इस तरह वैज्ञानिक विधि से करें आलू की खेती, होगा जबरदस्त मुनाफा
आलू की खेती: खेती-बाड़ी में अगर वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग किया जाने लगे तो मुनाफा काफी ज्यादा हो जाता है और ज्यादा कमाई होने से किसानों की खुशी भी डबल हो जाती है. आपको बता दें कि आजकल के समय में अधिकतर लोग वैज्ञानिक तरीके से खेती बाड़ी करते हैं.
वैज्ञानिक तरीके से खेती बाड़ी करने से मुनाफा काफी अधिक होता है और साथ ही साथ लोगों का भरोसा भी काफी बढ़ने लगता है. आज हम आपको आलू की खेती के बारे में बताने वाले हैं जो कि भारत में सबसे ज्यादा पाया जाने वाला सब्जी ह.
इस तरह वैज्ञानिक विधि से करें आलू की खेती, होगा जबरदस्त मुनाफा
भारत हो या विषयवर का कोई भी देश हर जगह आलू का मांग बना रहता है. आलू की मांग सालों भर बनी रहती है. आलू की खेती में अगर आप वैज्ञानिक विधि का उपयोग करेंगे तो मुनाफा 3 गुना होगा.
रोपनी का समय
हस्त नक्षत्र के बाद एवं दीपावली के दिन तक आलू रोपनी का उत्तम समय है। वैसे अक्टूबर के प्रथम सप्ताह से लेकर दिसम्बर के अंतिम सप्ताह तक आलू की रोपनी की जाती है। परन्तु अधिक उपज के लिए मुख्यकालीन रोप 5 नवम्बर से 20 नवम्बर तक पूरा कर लें।
इस तरह वैज्ञानिक विधि से करें आलू की खेती, होगा जबरदस्त मुनाफा
प्रभेदों का चयन
आवश्यकता एवं इच्छा के अनुसार प्रभेदों का चयन करें। राजेन्द्र आलू -3, कुफ्री ज्योति, कुफ्री बादशाह, कुफ्री पोखराज, कुफ्री सतलज, कुफ्री आनन्द एवं कुफ्री बहार मधय अगात के लिए प्रचलित प्रभेद हैं जो 90 दिन से लेकर 105 दिनों में परिपक्व हो जाता है।
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राजेन्द्र आलू -1, कुफ्री सिंदुरी एवं कुफ्री लालिमा आलू के प्रचलित पिछात प्रभेद हैं जो 120 दिन से लेकर 130 दिन तक परिपक्व हो जाते है।
बीज दर
आलू का बीज दर इसके कंद के वजन, दो पंक्तियों के बीच की दूरी तथा प्रत्येक पंक्ति में दो पौधों के बीच की दूरी पर निर्भर करता है। प्रति कंद 10 ग्राम से 30 ग्राम तक वजन वाले आलू की रोपनी करने पर प्रति हें. 10 क्विंटल से लेकर 30 क्विंटल तक आलू के कंद की आवश्यकता होती है।
बीजोपचार
शीत-भंडार से आलू निकालने के बाद उसे त्रिपाल या पक्की फर्श पर छायादार एवं हवादार जगह में फैलाकर कम से कम एक सप्ताह तक रखा जाता है। सड़े एवं कटे कंद को प्रतिदिन निकालते रहना चाहिए। जब आलू के कंद में अंकुरण निकलना प्रारंभ हो जाय तब रासायनिक बीजोपचार के बाद रोपनी करनी चाहिए।