80 के दशक में इतने में आती थी Royal Enfield, इतनी तो आज कल के बच्चो की पॉकेट मनी
38 साल पहले इतने में आती थी Royal Enfield, इतनी तो आज कल के बच्चो की पॉकेट मनी,इंडिया में खान पान पहले की तुलना में आज काफी महंगा है। आमदनी से तुलना करें तो आज के मुकाबले पहले महंगा था। रॉयल एनफील्ड को उसके क्लासिक डिज़ाइन और आवाज के कारण बहुत पसंद किया जाता रहा है और आज भी लोग इसके फैन है। इस बाइक के सर्विस सेंटरों की व्यापकता और उनकी अच्छी कस्टमर सर्विस के कारण भी लोग इस पर बहुत भरोसा करते हैं।
80 के दशक में इतने में आती थी Royal Enfield, इतनी तो आज कल के बच्चो की पॉकेट मनी
गोल्ड था 700 रूपए तोला
सोना आज 62 से ऊपर चला गया है। लेकिन किसी जमाने में यह 700 रूपए तोला भी था। जमाना ज्यादा पुराना नहीं है। सन 2000 में सोने के भाव 4400 रूपए प्रति दस ग्राम थे। ऐसे ही बाइक की बात करें तो 50 हजार में आने वाली बाइक आज 85 हजार रूपए में आ रही है। रॉयल एनफील्ड की बाइक भी इन 10 वर्षों में दोगुनी कीमत पर मिल रही है।
बुलेट का लुक बहुत रॉयल होता है जिसके कारण लोग इसको चलाने में फक्र महसूस करते हैं। लेकिन इन दिनों इस बुलेट का एक नया लुक लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। जी हां, बुलेट एक बार फिर से नए अवतार में आने वाली है। इसमें कंपनी ने कई तगड़े फीचर्स दिए हैं।
क्या आपको पता है कि साल 1986 में Royal Enfield बाइक की कीमत एक बच्चे की पॉकेट मनी के बराबर होती था, जिसका बिल सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रहा है। इस पिक्चर में 80 के दशक की Royal Enfield Bullet 350 का लुक भी देखने को मिल रहा है जिसके साथ उसकी कीमत का भी खुलासा हो गया है।
पुरानी Royal Enfield 350 Bike
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सोशल मीडिया पर साल 1986 में खरीदी गई एक रॉयल एनफील्ड बुलेट 350 का बिल खूब वायरल हो रहा है, जिसको देख कर हर कोई हैरान रह गया है। इसमें बाइक की ऑन रोड कीमत केवल 18,700 रुपये दी गई है, और यह बिल साल 1986 का है।
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आपको बता दें कि इस बिल को संदीप ऑटो कंपनी ने वायरल किया गया था जो कि झारखंड में स्थित है। इस बाइक के बारें में बहुत कम ही लोगों को पता होगा कि रॉयल एनफील्ड बुलेट को साल 1986 में सिर्फ एनफील्ड बुलेट के नाम से जाना जाता था।
उस समय भी इस बुलेट को दमदार क्वालिटी और रॉयल लुक के कारण पसंग किया जाता था, इसके अलावा विश्वसनीयता के कारण भी इस बाइक को जाना जाता था और इसका इस्तेमाल भारतीय सेना द्वारा सीमावर्ती क्षेत्रों में गश्त के लिए किया जाता था।