कम समय में करोड़पति बना देगा आपको इस खीरे की खेती,हजारों रुपए में 1 किलो बिकता है यह खीरा
खीरे की खेती : आजकल के समय में युवाओं के द्वारा ज्यादातर ध्यान खेती-किसानी पर दिया जा रहा है क्योंकि खेती किसानी से मुनाफा काफी ज्यादा हो रहा है और यही कारण है कि किसान ज्यादा ध्यान खेती-किसानी पर लगाने लगे हैं.
आज हम आपको खीरे की एक बेहतरीन उन्नत किस्म के बारे में बताने वाले हैं जिसकी खेती करके आप कम समय में अमीर हो सकते हैं. तो आइए जानते हैं इसकी खेती के बारे में विस्तार से……
खीरे के लिए खेत की तैयारी / खीरे की भूमि तैयार करना
खेत को तैयार करने के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करके 2-3 जुताई देशी हल से कर देनी चाहिए। इसके साथ ही 2-3 बार पाटा लगाकर मिट्टी को भुरभुरा बनाकर समतल कर देना चाहिए।
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खीरे की खेती : बीज की मात्रा व उपचार (khira ki kheti)
एक एकड़ खेत के लिए 1.0 किलोग्राम बीज की मात्रा काफी है। ध्यान रहे बिजाई से पहले, फसल को कीटों और बीमारियों से बचाने के लिए और जीवनकाल बढ़ाने के लिए, अनुकूल रासायनिक के साथ उपचार जरूर करें। बिजाई से पहले बीजों का 2 ग्राम कप्तान के साथ उपचारित किया जाना चाहिए।
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खीरे की खेती में बुवाई का तरीका
सबसे पहले खेत को तैयार करके 1.5-2 मीटर की दूरी पर लगभग 60-75 से.मी चौड़ी नाली बना लें। इसके बाद नाली के दोनों ओर मेड़ के पास 1-1 मी. के अंतर पर 3-4 बीज की एक स्थान पर बुवाई करते हैं।
खीरा की खेती : खाद व उर्वरक
खेती की तैयारी के 15-20 दिन पहले 20-25 टन प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी गोबर की खाद मिला देते हैं। खेती की अंतिम जुताई के समय 20 कि.ग्रा नाइट्रोजन, 50 कि.ग्रा फास्फोरस व 50 कि. ग्रा पोटाशयुक्त उर्वरक मिला देते हैं। फिर बुवाई के 40-45 दिन बाद टॉप ड्रेसिंग से 30 कि.ग्रा नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की दर से खड़ी फसल में प्रयोग की जाती है।
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खीरे की खेती में सिंचाई
जायद में उच्च तापमान के कारण अपेक्षाकृत अधिक नमी की जरूरत होती है। अत: गर्मी के दिनों में हर सप्ताह हल्की सिंचाई करना चाहिए। वर्षा ऋतु में सिंचाई वर्षा पर निर्भर करती है। ग्रीष्मकालीन फसल में 4-5 दिनों के अंतर पर सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। वर्षाकालीन फसल में अगर वर्षा न हो, तो सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है।
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निराई-गुड़ाई
खेत में खुरपी या हो के द्वारा खरपतवार निकालते रहना चाहिए। ग्रीष्मकालीन फसल में 15-20 दिन के अंतर पर 2-3 निराई-गुड़ाई करनी चाहिए तथा वर्षाकालीन फसल में 15-20 के अंतर पर 4-5 बार निराई-गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती है। वर्षाकालीन फसल के लिए जड़़ों में मिट्टी चढ़ा देना चाहिए।