बेर की खेती आपको एक झटके मे बना देगा अमीर, जाने कैसे करे बेर की खेती
बेर की खेती भारत के सभी प्रान्तों में कुछ न कुछ क्षेत्रों में होती है किन्तु मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र व आंध्र प्रदेश में अपेक्षाकृत अधिक होती है। इस समय हमारे देश में इसकी खेती अनुमानत: 22,000 हेक्टेयर क्षेत्र में हो रही है तथा प्रतिवर्ष विशेषकर बंजर भूमि में व्यावसायिक खेती बढ़ जाती है।
जलवायु
बेर जलवायु की प्रतिकूल दशाएँ सहन करने की अदभुत क्षमता रखता है। इसकी बागवानी देश के उष्ण कटिबन्धीय तथा उपोष्ण क्षेत्रों में, समुद्र की सतह से लगभग 1000 मी. की ऊँचाई तक सफलतापूर्वक की जा सकती है। इसकी बागवानी वैसे तो सभी प्रकार की जलवायु में की जा सकती है किन्तु अधिक उत्पादन तथा अच्छे आकार व गुणों वाले फल उत्पादन के लिये शुष्क एवं गर्म जलवायु उपयुक्त है। इसके अतिरिक्त उन क्षेत्रों में जहाँ भूमिगत जल काफी निचली सतह पर हो, वहां भी बेर की बागवानी की जा सकती है। आर्द्रता वाले क्षेत्र में खर्रा व्याधि के प्रकोप की सम्भावना अधिक होती है।
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मिट्टी
बेर की बागवानी विभिन्न प्रकार की मिट्टी जैसे: उथली, गहरी, कंकरीली, रेतीली, चिकनी आदि में की जा सकती है। इसके अतिरिक्त लवणीय, क्षारीय दशा में भी उगने की क्षमता रखता है। इसके पौधे 40-50 प्रतिशत विनिमयशील सोडियम (क्षारीय) तथा 12-15 मिलीम्होज प्रति सें.मी. विद्युत् चालकता वाली लवणीय भूमि में सफलता पूर्वक की जा रही है। व्यावसायिक बागवानी के लिये जीवांशयुक्त बलुई दोमट मिट्टी सर्वोत्तम मानी गई है। किन्तु वे क्षेत्र जहाँ की जमीन नीची, रेतीली, उसरीली, बंजर जहाँ अन्य फसलें व फल वृक्ष नही उगाये जा सकते, वहाँ भी सीमित साधनों के साथ बेर की बागवानी सफलता पूर्वक की जा सकती है।
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किस्में
देश में बेर की लगभग 125 से भी अधिक किस्में उगाई जाती है। इन किस्मों का विकास विभिन्न क्षेत्रों में फल के भौतिक तथा रासायनिक गुणों जैसे फल का रंग, आकार, वजन, मिठास व खटास की मात्रा के आधार पर चयन द्वारा किया गया है। किस्मों के नामकरण की पद्धति एक समान नहीं है। कभी-कभी एक ही किस्म विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न नाम से जानी जाती है जैसे – बेर की उमरान किस्म जिसका विकास राजस्थान के अलवर क्षेत्र में हुआ किन्तु यही किस्म दूसरे स्थान पर काठा, कोठी, अजमेरी, चमेली, काठा बाम्बे, माधुरी आदि नामों से जानी जाती है। इसकी प्रकार गोला किस्म विभिन्न जगहों पर देलही गोला, नाजुक, सेब, लड्डू, अकरोटा आदि नामों से प्रचलित हैं।
व्यावसायिक किस्मों का वर्गीकरण फलों के पकने के समय के आधार पर किया गया है। बेर की कुछ किस्में अपने विशेष स्वाद, कुछ आकार व कुछ अधिक पैदावार के लिये प्रसिद्ध हैं।
नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, फैजाबाद में देश के विभिन्न क्षेत्रों से लगभग 40 किस्में एकत्रित की गयी है। जिनके अध्ययन के आधार पर यह पाया गया है कि उत्तर प्रदेश सहित पूर्वी भारत के लिए 7 किस्में (गोला, कालीगोरा, बनारसी कड़ाका, कैथिली, मुडिया मुरहरा, पोंडा व उमराना) व्यावसायिक बागवानी के लिये उपयुक्त हैं। इन किस्मों का विवरण निम्नलिखित है।
अगेती किस्में
गोला- फल का आकार गोल, माप 3.0 x 2.8 सें.मी. प्रति फल औसत भार 16.5 ग्रा., पकने पर रंग हल्का पीला व चमकदार, गूदा 95.2 प्रतिशत मुलायम, रसीला, मीठा, सफेद, कुल घुलनशील ठोस पदार्थ 15.5 प्रतिशत खटास 0.12 प्रतिशत, विटामिन ‘सी’ 90 मिग्रा./100 ग्रा. गूदा, औसत पैदावार 80 कि.ग्रा. प्रति पेड़।