July 27, 2024

किसानों की चमकेंगी किस्मत केले की खेती से,जानें इसे सही से करने का तरीका

किसानों की चमकेंगी किस्मत केले की खेती से

किसानों की चमकेंगी किस्मत केले की खेती से

किसानों की चमकेंगी किस्मत केले की खेती से,जानें इसे सही से करने का तरीका केले की खेती में सफल होना है तो जाने ले ये रोग के खतरनाक लक्षण और रोग का जैविक नियंत्रण। शायद आप ये जानकर चौंक जाएंगे कि केले के फल को लगने वाला सिगार एंड रोट रोग,जो तीन-चार साल पहले तक कम महत्वपूर्ण माना जाता था, अब एक गंभीर बीमारी के रूप में उभर कर सामने आया है। इसकी मुख्य वजह वातावरण में अत्यधिक नमी होना है।

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सिगार एंड रोट रोग के लक्षण

यह रोग केले के फल के सिरे पर सूखे,भूरे से काले रंग के सड़न के रूप में दिखाई देता है।दरअसल,फंगल का विकास फल बनने की अवस्था में ही शुरू हो जाता है, लेकिन लक्षण फल पकने से पहले या बाद में दिखाई देते हैं।प्रभावित क्षेत्र भूरे रंग के फफूंदयुक्त दिखाई देते हैं,जो जले हुए सिगार के राख की तरह प्रतीत होते हैं। इसी वजह से इस रोग को सिगार एंड रोट का नाम दिया गया है।यह रोग भंडारण या परिवहन के दौरान पूरे फल को प्रभावित कर सकता है,जिससे फल “फूल” जाते हैं। ऐसे फलों का आकार असमान्य होता है,उनकी सतह पर फफूंद लग जाता है और त्वचा पर स्पष्ट रूप से घाव दिखाई देते हैं।

सिगार एंड रोट रोग कैसे फैलता है

यह रोग हवा या बारिश के जरिए फैलता है।केले के फूल बनने की अवस्था के दौरान बरसात के मौसम में स्वस्थ ऊतकों पर फंगल का हमला होता है। यह फूल के माध्यम से केले को संक्रमित करता है।वहां से बाद में यह फल की नोकी तक फैल जाता है और राख जैसा सूखा सड़न पैदा करता है जो सिगार की तरह दिखता है, इसी वजह से इस रोग को सिगार एंड रोट रोग कहा जाता है।

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सिगार एंड रोट रोग का जैविक नियंत्रण

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इस रोग के फफूंद को नियंत्रित करने के लिए बेकिंग सोडा से बने स्प्रे का उपयोग किया जा सकता है।यह घोल बनाने के लिए 50 ग्राम बेकिंग सोडा को एक लीटर पानी में 25 मिलीलीटर लिक्विड सोप के साथ घोलकर तैयार किया जाता है। संक्रमण से बचाने के लिए इस मिश्रण का छिड़काव संक्रमित टहनियों और आसपास की टहनियों पर करें। यह केले के फल की सतह के pH स्तर को बढ़ा देता है और फंगस के विकास को रोकता है।कॉपर ऑक्सीक्लोराइड जैसे कॉपर फफूंदनाशक स्प्रे भी कारगर हो सकते हैं। लेकिन छिड़काव के 10 दिन बाद ही फलों की कटाई करनी चाहिए।

रासायनिक नियंत्रण

यदि संभव हो तो रासायनिक नियंत्रण के साथ-साथ बचाव के उपायों के साथ एकीकृत दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।यह रोग आमतौर पर मामूली महत्व का होता है और इसे रासायनिक नियंत्रण की आवश्यकता कम ही पड़ती है। लेकिन पिछले तीन वर्षों में इस रोग की गंभीरता में भारी वृद्धि हुई है,क्योंकि अत्यधिक बारिश के कारण वातावरण में बहुत अधिक नमी होती है,जो इस रोग के फैलने के लिए महत्वपूर्ण है।प्रभावित गुच्छों पर एक बार मैनकोजेब,ट्राइफेनट मिथाइल या मेटालेक्सिल 1 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव किया जा सकता है और बाद में प्लास्टिक से ढक दिया जा सकता है।

सिगार एंड रोट रोग से बचाव के उपाय

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रोग प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग करें।
केले के बगीचे में उचित वेंटिलेशन की व्यवस्था करें।

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