तमिलनाडु में हो रहा है नीट का विरोध,इसके हटने से कैसे होगा मेडिकल सीटों पर चयन
Anti NEET Bill: तमिलनाडु क्यों नीट परीक्षा का विरोध कर रहा है, क्या इसके पहले भी राज्यों ने इस परीक्षा के खिलाफ आवाज उठायी है. एंटी नीट बिल पास होने में क्या अड़चन है? जानते हैं ऐसे ही सवालों के जवाब.
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तमिलनाडु में क्यों हो रहा है नीट का विरोध
Why Tamil Nadu Is Opposing NEET Exam: मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में प्रवेश के लिए आयोजित होने वाले नेशनल लेवल के एंट्रेंट टेस्ट नीट का तमिलनाडु में जमकर विरोध हो रहा है. राज्य सरकार पूरी कोशिश में है कि स्टेट के छात्रों को इस परीक्षा से मुक्ति मिल जाए और इसके लिए स्टेट गवर्नमेंट एंटी नीट बिल लाने की भी कोशिश कर रही है. हालांकि काफी प्रयास के बाद भी बार-बार ये बिल पास नहीं होता. तमिनलाडु के गवर्नर ने बिल पास करने से मना कर दिया. ऐसा पहले भी हो चुका है. आखिर ये बिल क्या है, तमिलनाडु इस परीक्षा के खिलाफ क्यों है, बिल पास होने में क्या अड़चन है और अगर ये पास होता है तो राज्य में मेडिकल सीटों पर एडमिशन कैसे होगा? जानते हैं ऐसे ही सवालों के जवाब.
क्या है नीट
नेशनल एलिजबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट या नीट परीक्षा का आयोजन देश के मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में अंडर ग्रेजुएट कोर्सेस में एडमिशन के लिए किया जाता है. ये एक नेशनल लेवल का एग्जाम है जिसे पास करने वाले छात्र ही एमबीबीएस सीटों पर प्रवेश पाते हैं. पूरे देश में केवल एक ही परीक्षा आयोजित होती है और इसके प्रदर्शन के आधार पर कैंडिडेट्स को एडमिशन मिलता है. नीट यूजी परीक्षा देश की सबसे बड़ी परीक्षा बन गई है जिसमें हर साल 19 से 22 लाख के करीब छात्र बैठते हैं.
तमिलनाडु को क्यों रास नहीं आ रही नीट परीक्षा
तमिनलाडु का कहना है कि मेडिकल सीटों पर प्रवेश के लिए इस तरह के नेशनल लेवल एग्जाम की जगह पर बारहवीं के अंक ही आधार होने चाहिए. इससे यहां के छात्रों को परेशानी होती है क्योंकि नीट का ज्यादातर कोर्स सीबीएसई पैटर्न पर होता है और यहां के स्टेट के बच्चों ने ये पढ़ाई नहीं की है. इसलिए साल 2013 में नीट आने के पहले मेडिकल प्रवेश का जो तरीका है वही बरकरार रहना चाहिए.
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क्या हैं विरोध के दूसरे कारण
इससे बच्चों को बारहवीं के साथ ही एक और परीक्षा की तैयारी करनी होती है जिससे उन पर प्रेशर बढ़ता है.
तमिलनाडु का कहना था कि साल 2007 के बाद से राज्य में प्रवेश परीक्षा का कोई कल्चर नहीं है.
इससे अमीर बच्चे तो मेडिकल की सीटें पा लेते हैं क्योंकि वे महंगी कोचिंग करके एग्जाम क्लियर कर लेते हैं जबकि गरीब बच्चे रह जाते हैं.
इससे कोचिंग का धंधा फल-फूल रहा है.
रिजर्वेशन पाने वाले छात्र और गरीब छात्र एडमिशन से वंचित रह जाते हैं.
कैसे छिड़ी बहस
तमिलनाडु और दूसरे राज्य काफी समय से नीट का विरोध कर रहे हैं जिसमें अब तमिलनाडु का नाम प्रमुख है. यहां बहुत बच्चों ने मेडिकल सीटों पर एडमिशन न मिलने से आत्महत्या कर ली. धीरे-धीरे ये आंकड़ा 16 पहुंच गया है. नीट साल 2013 से कंडक्ट होता है लेकिन कई बार बीच में परीक्षा बाधित हुई जब इसके खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर हुईं.
इस बहस को बल मिला जब साल 2017 में एक 17 साल की दलित लड़की अनीता ने सुसाइड कर लिया. स्कूल टॉपर होने के बावजूद उसे मेडिकल कॉलेज में एडमिशन नहीं मिला क्योंकि वो नीट क्लियर नहीं कर पायी थी. अगर ताजा दुर्घटना की बात करें तो हाल ही में चेन्नई के 19 साल के एस जगदीश्वरन ने खुदकुशी कर ली. उसने दो बार नीट परीक्षा पास करने की कोशिश की पर असफल रहा. इसके बाद उसके पिता ने भी खुद को मार दिया. इस केस के बाद से तमिनलाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टेलिन ने इंडियन प्रेसिडेंट से आग्रह किया कि वे एंटी नीट बिल जल्दी पास करें, इससे पहले की राज्य में और आत्महत्या के केस हों.