July 27, 2024

वसंत ऋतु मे कैसे रखे अपनी सेहत का ध्यान व कैसी जीवनशैली अपनाएं जानिए आयुर्वेद चिकित्सक Dr.Shraddha Dhote से-

आयुर्वेद चिकित्सक Dr.Shraddha Dhote से

आयुर्वेद चिकित्सक Dr.Shraddha Dhote से

आयुर्वेद चिकित्सक Dr.Shraddha Dhote: आयुर्वेद में ‘वसंत ऋतु’ वसंत के समय को दर्शाती है। यह ऋतु भारतीय मौसम की षड़रितुओं में से एक है, जिसमें शारीरिक और मानसिक दृष्टि से विशेष गुणों और प्रभावों का समय होता है। यह ऋतु शीतकाल और ग्रीष्म-काल का सन्धि समय होता है। इस मौसम में न तो कँपकँपाती सर्दी होती है और न ही कड़ाके की धूप या गर्मी। मौसम मिला-जुला होता है। जठराग्नि की क्रियाशीलता -मन्द अथवा अल्प बल – मध्यम बल –

वसंत ऋतु मे कैसे रखे अपनी सेहत ध्यान व कैसी जीवनशैली अपनाएं जानिए आयुर्वेद चिकित्सक Dr.Shraddha Dhote से-

इस ऋतु में सूर्य की किरणें तेज होने लगती हैं। शीत-काल (हेमन्त और शिशिर ऋतुओं) में शरीर के अन्दर जो कफ जमा हो जाता है, वह इन किरणों की गर्मी से पिघलने लगता है। इससे शरीर में कफ दोष कुपित हो जाता है और कफ से होने वाले रोग (जैसे- खाँसी, जुकाम, नजला, दमा गले की खराश, टॉन्सिल्स, पाचन-शक्ति की कमी, जी-मिचलाना आदि) उत्पन्न हो जाते हैं।

वातावरण में सूर्य का बल बढ़ने और चंद्रमा की शीतलता कम होने से जलीय अंश और चिकनाई कम होने लगती है। इसका प्रभाव शरीर पर पड़ता है और दुर्बलता आने लगती है। अतः इस ऋतु में खान-पान का विशेष ध्यान रखना चाहिए। अम्ल, मधुर और लवण रस वाले पदार्थ खाने से कफ में वृद्धि होती है।
आयुर्वेद के अनुसार अपने जीवनशैली और आहार को बदलकर स्वास्थ्य को बनाए रखने का अहम तरीका है।
वसंत ऋतु में स्वस्थ रहने के लिए, आयुर्वेद कई प्राथमिकताएं सुझाता है, जैसे कि:

  1. आहार का अनुकूलन: मौसम की गर्मी और कफ के बढ़ने को ध्यान में रखते हुए हल्का, गरम, और सूखे भोजनों का प्राथमिक रूप से सेवन करें। कफ दोष को संतुलित करने के लिए तीव्र, तीक्ष्ण, और कड़वे भोजन का सेवन करें।
  2. व्यायाम: शारीरिक गतिविधियों में बदलाव के लिए योग, या नृत्य जैसी तेज़ शारीरिक गतिविधियों में शामिल हों। इससे सिरकुलेशन और मेटाबोलिज़्म को उत्तेजित किया जा सकता है, जो ठंडे महीनों के दौरान धीमा हो जाता है।
  3. शुद्धिकरण: वसंत ऋतु को शरीर से जमा विषैले पदार्थों को निकालने के लिए उत्तम समय माना जाता है। इसमें पंचकर्म जैसे आयुर्वेदिक शुद्धिकरण तकनीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है या आसान शुद्धिकरण अभ्यासों जैसे उपवास या जड़ी-बूटियों का सेवन किया जा सकता है।
  4. दैनिक दिनचर्या: वसंत की प्राकृतिक रूचियों के साथ अपनी दिनचर्या (दिनचर्या) को स्थापित करें, जैसे कि जल्दी उठना, तेल मालिश (अभ्यंग) जैसी आत्म सेवा शास्त्रों का अभ्यास करना, और नियमित भोजन समय बनाए रखना।
  5. आयुर्वेदिक: अपने आहार और जीवनशैली में आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों और मसालों का उपयोग करें, जिनकी शुद्धिकरण और ऊर्जा को बढ़ाने की गुणकारिता होती है, जैसे कि अदरक, हल्दी, नीम, और तुलसी।

पथ्य आहार-विहार (Daily Diet and Routine)


• इस ऋतु में ताजा हल्का और सुपाच्य भोजन करना चाहिए।
• कटु रस युक्त, तीक्ष्ण और कषाय पदार्थों का सेवन लाभकारी है।
• मूँग, चना और जौ की रोटी, पुराना गेहूँ और चावल, जौ, चना, राई, भीगा व अंकुरित चना, मक्खन लगी रोटी, हरी शाक-सब्जी एवं उनका सूप, सरसों का तेल, सब्जियों में- करेला, लहसुन, पालक, केले के फूल, जिमीकन्द व कच्ची मूली, नीम की नई कोपलें, सोंठ, पीपल, काली मिर्च, हरड़, बहेड़ा, आँवला, धान की खील, खस का जल, नींबू, मौसमी फल तथा शहद का प्रयोग बहुत लाभकारी है।
• जल अधिक मात्रा में पीना चाहिए।
• कफ को कम करने के लिए वमन (गुनगुना जल पीकर गले में अंगुली डालकर उल्टी करना)
• हरड़ के चूर्ण का शहद के साथ मिला कर सेवन करना उपयोगी है।
• नियमित रूप से हल्का व्यायाम अथवा योगासन करना चाहिए।
• तैल मालिश करके तथा उबटन लगा कर गुनगुने पानी से (आदत होने पर ठण्डे ताजे पानी से) स्नान करना हितकारी है।
• औषधियों से तैयार धूमपान तथा आँखों में अंजन का प्रयोग करना चाहिए।
• स्नान करते समय मलविसर्जक अंगों की सफाई ठीक प्रकार से करनी चाहिए।
• सिर पर टोपी व छाते का प्रयोग करने से धूप से बचा जा सकता है।
• स्नान के बाद शरीर पर कपूर, चन्दन, अगरु (अगर), कुंकुम आदि सुगन्धित पदार्थों का लेप लाभकारी होता है।

अपथ्य आहार-विहार (Unhealthy Diet)

• वसन्त-ऋतु में भारी, चिकनाई युक्त, खट्टे (इमली, अमचूर) व मीठे (गुड़, शक्कर) एवं शीत प्रकृति वाले पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।
• नया अनाज, उड़द, रबड़ी, मलाई जैसे भारी भोज्य पदार्थ व खजूर का सेवन भी ठीक नहीं है।
• खुले आसमान में, नीचे ओस में सोना, ठण्ड में रहना, धूप में घूमना तथा दिन में सोना भी हानिकारक है

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