July 27, 2024

इस फ़सल का बिज़नेस कर कमा सकते है अनगिनत रुपए,जानिए शुरू करने का तरीका

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इस फ़सल का बिज़नेस कर कमा सकते है अनगिनत रुपए,जानिए खेती का तरीका इस मशरूम को चाईनीज मशरूम तथा गर्मी का मशरूम भी कहा जाता है इसकी खेती सर्वप्रथम 1822 में चीन में शुरू हुई थी।शुरू मे यह मशरूमं ”ननहुआ“ के नाम से जानी जाती थी।इस प्रकार खाद्य मशरूम के उपभोग बाजार को व्यापक बनाता है यह सबसे कम समय में तैयार होने वाला मशरूम है।भारत वर्ष में इसकी खेती प्राय समुद्र तटीय राज्यों जैसे-पश्चिमी बंगाल,उड़ीसा, कर्नाटक,तमिलनाडु एवं आन्ध्र प्रदेश में की जाती है।वर्तमान में इसकी खेती देश के मैदानी भागों में प्राय माह जुलाई से सितम्बर तक की जाती है।जो चीनी,कपास और तंबाकू उद्योग से भी अधिक है।

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मशरूम की पौष्टिकता एवं औषधीय गुण

मशरूम एक पूर्ण स्वास्थ्यवर्धक है जो सभी लोगों बच्चों से लेकर वृद्ध तक के लिए अनुकूल है इसमे प्रोटीन, रेशा, विटामिन तथा खनिज लवण प्रचुर मात्रा में पाये जाते है ताजे मशरूम में 80-90 प्रतिशत पानी होता है तथा प्रोटीन की मात्रा 12- 35 %, कार्बोहाइड्रेट 26-82 % एवं रेशा 8-10 % होता है मशरूम में पाये जाने वाला रेशा पाचक होता है। मशरूम में पाये जाने वाले पोषक तत्व है।मशरूम शरीर की प्रतिरोधी क्षमता को बढाता है स्वास्थ्य ठीक रहता है कैंसर की सम्भावना कम करता है गॉठ की वृद्धि को रोकता है,रक्त शर्करा को सन्तुलित करता है।मशरूम कई प्रकार के रोगो के लिए भी में लाभदायक है।

वार्षिक फसल चक्र

विभिन्न प्रकार की मशरूम की वनस्पतीक वृद्धि व फलस्वरूप बेज और फसल के लिए अवस्थिति अनुकूल तापमान अलग-अलग होता है जो मशरूम को कृषि फसलो की भाँति फेर बदल करके वर्ष भर भी इसे उगाया जा सकता है।श्वेत वटन मशरूम की खेती शरद ऋतु में अक्टूबर से फरवरी तक की जा सकती है।

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आधार सामग्री की तैयारी

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मशरूम की खेती के लिए गेहूँ के भूसे को बोरे में रात भर के लिए साफ पानी में भिगो दिया जाता है यदि आवश्यक हो तो 7 ग्राम कार्बेन्डाइजिन (50 प्रतिशत) तथा 115 मिली0 फार्सलीन प्रति 100 लीटर पानी की दर से मिला दिया जाता है, इसके पश्चात भूसे को बाहर निकालकर अतिरिक्त पानी निथारकर अलग कर दिया जाता है और जब भूसे से लगभग 70 प्रतिशत नमी रह जाये तब यह बोने के लिए तैयार हो जाता है।इसमें ढिंगरी मशरूम की तरह इसे बोया जाता है परन्तु स्थान की मात्रा ढिंगरी मशरूम से दो गुनी प्रयोग की जाती है तथा बोआई करने के बाद थैलों में छिद्र नहीं बनाये जाते है। बिजाई के बाद तापक्रम 28-32 डिग्री होना चाहिये।

विजाई के वी 20-25 दिन बाद फफूँद पूरे भूसे में सामान रूप से फैल जाती है, इसके बाद मृदा तैयार कर 2 से 3 इंच मोटी परत थैले के मुँह को खोलकर ऊपर समान रूप से फैला दिया जाता है इसके पश्चात पानी के फव्वारे से इस तरह आवरण मृदा के ऊपर सिचाई की जाती है कि पानी से आवरण मृदा की लगभग आधी मोटाई ही भीग पाये आवरण मृदा लगाने के लगभग 20 से 25 दिन बाद आवरण मृदा के ऊपर मशरूम की बिन्दुनुमा अवस्था दिखाई देने लगती है। इस समय फसल का तापमान 32 से 35 तथा अधिकतम 90 % से अधिक बनाये रखा जाता है अगले 3 से 4 दिन में मशरूम तोड़ने लायक हो जाती है। सूखे भूसें के भार का 70 से 80 प्रतिशत उत्पादन प्राप्त होता है।

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